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फिर भी शिप्रा मैली:21 साल में तीन योजनाओं से शिप्रा का शुद्धिकरण, 650 करोड़ खर्च; अब 598 करोड़ से फिर पानी साफ करेंगे
शिप्रा शुद्धिकरण यानी नदी को स्वच्छ व प्रवाहमान बनाने के लिए जिम्मेदारों ने 21 वर्ष में तीन प्रोजेक्ट व उनके संचालन पर 650 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए लेकिन ये प्रयास बेनतीजा रहे। शिप्रा अभी भी मैली है। इसकी दो बड़ी वजह है। पहली यह कि करोड़ों रुपए के ये प्रोजेक्ट इंदौर की तरफ से कान्ह नदी के जरिए आने वाले प्रदूषित-गंदे पानी को शिप्रा में मिलने से रोकने व उसे डायवर्ट करने में नाकाम रहे। दूसरी वजह यह कि ये प्रोजेक्ट शहर के नालों का पानी शिप्रा में मिलने से भी नहीं रोक पाए।
इस बीच सिंहस्थ 2028 की जरूरत को ध्यान में रखते हुए अब 598 करोड़ की अंडरग्राउंड नहर (क्लोज डक्ट) परियोजना पर काम होगा। दावा यही है कि नहर के जरिए कान्ह के पानी को शिप्रा में मिलने से रोकते हुए उसे डायवर्ट किया जा सकेगा। 6 दिसंबर को मंत्री परिषद ने इस परियोजना को मंजूरी दी है। प्रशासकीय स्वीकृति व टेंडर की प्रक्रिया के बाद उम्मीद है 2023 से इसका काम होने लगेगा, ताकि समय रहते यह पूरा हो सके। इन तमाम परिस्थितियों व कवायदों के बीच सबसे बड़ा सवाल यह कि कहीं इस परियोजना का हश्र भी पहले की तरह ही न हो जाए।
क्लोज डक्ट एक नजर में
- यह 4.5 मीटर आयताकार आरसीसी बाॅक्स के आकार वाली पक्की नहर रहेगी।
- इसकी लंबाई 16.7 किमी और चौड़ाई 4.5 मीटर रहेगी। नहर से 40 क्यूसेक पानी बारिश को छोड़कर डायवर्ट किया जा सकेगा।
- कान्ह का गंदा पानी गोठड़ा के स्टापडेम से डायवर्ट करते हुए कालियादेह महल क्षेत्र में छोड़ा जाएगा।
- नहर का शुरुआती 100 मीटर का हिस्सा और आखिरी का 100 मीटर का भाग खुला रहेगा।
- नहर के संचालन, मेंटेनेंस व साफ-सफाई की जिम्मेदारी निर्माण एजेंसी की रहेगी।
स्वीकृति के बाद टेंडर के लिए भेजेंगे
क्लोज डक्ट की डिजाइन भोपाल के तकनीकी विशेषज्ञों ने तैयार की है। इसे तैयार करने में दूरदर्शिता बरती गई है। वर्ष 2052 की स्थिति को ध्यान में रखकर इसे तैयार किया है। प्रशासकीय स्वीकृति जारी होने के बाद टेंडर के लिए भेजेंगे।
-कमल कुंवाल, ईई जल संसाधन विभाग